कौन किसपर पड़ा भारी?उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे दशहरा रैलियों में गरजे! जानिए पुरी अंत तक जानकारी!
दशहरे के मौके पर मुंबई के अलग-अलग मैदानों में हुई शिवसेना के दो धड़ों की रैलियों में उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे ने एक-दूसरे को गद्दार कहा है.
उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे, दोनों ने ही शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे की विरासत पर अपना दावा ठोका और अपने आप को हिंदुत्व का असली सिपाही बताया.
किसने क्या कहा?
उद्धव ठाकरे मुंबई के ऐतिहासिक शिवाजी पार्क में शिवसेना के अपने गुट की रैली को संबोधित कर रहे थे. मुबंई के शिवाजी पार्क में अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा है कि इस तरह की भीड़ का जुटना दुर्लभ और ऐतिहासिक है.
उद्धव ठाकरे ने उपस्थित लोगों से कहा है कि उनका आभार प्रकट करने के लिए उनके पास शब्द नहीं हैं.
उद्धव ठाकरे ने कहा, “इस तरह के प्यार को पैसों से नहीं ख़रीदा जा सकता है. वो लोग धोखेबाज़ हैं. हां, एकनाथ शिंदे और उनके कैंप में शामिल लोग धोखेबाज़ हैं. यहां एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे पैसों से लाया गया है. यही ठाकरे परिवार की विरासत है.”
उद्धव ठाकरे ने कहा कि जिन लोगों को मैंने ज़िम्मेदारी दी थी वो साजिश रच रहे थे. ऐसा फिर से नहीं होगा, लेकिन वो भूल गए कि मैं सिर्फ़ उद्धव ठाकरे नहीं हूं, मैं उद्धव बालासाहेब ठाकरे हूं.
उद्धव ठाकरे ने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा कि परंपरा के तहत आज रावण का दहन होगा. लेकिन अब रावण भी बदल गया है. अब रावण के दस सर नहीं है बल्कि उसके पास 50 बक्से हैं, वो खोखासुर है जो बहुत ख़तरनाक है.
रैली को संबोधित करते हुए उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे पर तीखा हमला बोला. उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे को गद्दार कहते हुए कहा कि इस विशाल भीड़ को देखकर गद्दारों को डर लग रहा होगा.
उद्धव ठाकरे ने कहा, “इस साल का रावण अलग है, रावण के दस सिर हुआ करते थे, लेकिन इस रावण के 50 सिर हैं.”
उनका इशारा दल बदलने के लिए विधायकों को दिए गए कथित 50 करोड़ रुपए के प्रस्ताव की तरफ़ था.
“धोखे के निशान मिटाना आसान नहीं”
ठाकरे ने कहा कि अगर एक धोखेबाज़ अपने धोखे के नामों निशान मिटाना भी चाहे तो वो नहीं मिटते, वो उसके माथे पर चिपके रहते हैं.
ठाकरे ने रैली में शामिल लोगों की भारी संख्या की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि आज की रैली में भीड़ को देखकर बहुत से लोग हैरान होंगे, वो सोच रहे होंगे कि अब धोखेबाज़ों का क्या होगा.
उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे गुट को हिंदुत्व पर बोलने की चुनौती देते हुए कहा कि शिंदे गुट बिना बीजेपी की स्क्रिप्ट के हिंदुत्व पर बोलकर दिखाएं.
ठाकरे ने बीजेपी पर भी निशाना साधा और कहा, “देश तानाशाही और ग़ुलामी की तरफ़ बढ़ रहा है, क्या आप लोग इसके लिए तैयार हैं?”
उद्धव ठाकरे ने ये भी कहा कि बीजेपी गाय की बात तो करती है, लेकिन महंगाई की बात नहीं करती है.
उद्धव ठाकरे ने ये भी कहा कि उन्हें बीजेपी से हिंदुत्व पर सबक लेने की ज़रूरत नहीं है. ठाकरे ने कहा, “हमने बीजेपी से नाता तोड़ लिया है, इसका मतलब ये नहीं है कि हमने हिंदुत्व को भी छोड़ दिया है. मैं आज भी हिंदू हूं और हमेशा हिंदू ही रहूंगा.”
हमने जो किया वो गद्दारी नहीं, गदर है – एकनाथ शिंदे.
मुंबई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे दशहरा रैली को संबोधित कर रहे हैं.उन्होंने अपने भाषण में खुलकर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर हमला किया.
उन्होंने कहा :
– शिवसेना ना उद्धव ठाकरे की है ना एकनाथ शिंदे की है. ये शिवसेना सिर्फ और सिर्फ बाला साहेब ठाकरे के विचारों की है.
– विरासत विचारों की होती है. हम बालासाहेब ठाकरे के विचारों के वारिस हैं.
-पिछले दो महीने में हमारे लिए गद्दार और खोखे शब्द का इस्तेमाल किया गया. गद्दारी हुई है लेकिन वो गद्दारी 2019 में हुई थी. जो चुनाव हमने लड़ा था, आपने नतीजों के बाद बीजेपी को छोड़कर महाविकास अघाड़ी गठबंधन बना लिया, वो गद्दारी थी. उस समय बाला साहेब ठाकरे के विचारों के साथ आपने गद्दारी की थी. जिन लोगों ने शिवसेना-बीजेपी को वोट किया था उनके साथ गद्दारी की गई.
– एक तरफ बालासाहेब ठाकरे की तस्वीर और दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी की तस्वीर चुनाव से पहले लगाई थी. लोगों ने गठबंधन के नाम पर वोट दिया था. लोग चाहते थे कि शिवसेना-बीजेपी गठबंधन की सरकार बनेगी. आपने वोटरों के साथ विश्वासघात किया है. महाराष्ट्र की जनता के साथ गद्दारी की है.
-आप हमें गद्दार कह रहे हो. हमने जो किया वो गद्दारी नहीं है, वो गदर है..गदर. गदर का मतलब होता है क्रांति. हमने क्रांति की है.
– आपने बालासाहेब ठाकरे के विचारों को बेच दिया. हम पर आरोप लगाया कि बाप चुराने वाली टोली पैदा हो गई है. आपने तो बालासाहेब ठाकरे के विचारों को बेच दिया. आपने उन्हें बेचने का काम किया.
क्या हैं दोनों भाषणों के मायने?
बीबीसी मराठी की पत्रकार प्राजक्ता पोल के मुताबिक दोनों ही नेताओं की रैलियों में भीड़ दिखाई दी, इसलिए भीड़ के पैमाने पर किसी भी एक गुट की रैली को सफल या असफल बताना सही नहीं होगा.
हालांकि दोनों मैदानों में क्षमता का अंतर था, उद्धव ठाकरे की रैली शिवाजी पार्क मे हुई जिसकी क्षमता क़रीब 80 हज़ार है, लेकिन एकनाथ शिंदे ने बीकेसी मैदान में रैली की जिसकी क्षमता डेढ़ लाख के क़रीब है.
प्राजक्ता का कहना है कि दोनों ही गुटों ने अपनी तरफ़ से भीड़ जुटाने की कोशिश की लेकिन शिंदे की कोशिश ज़्यादा थी, ये साफ़ नज़र आ रहा था.
प्राजक्ता के मुताबिक, “कई पत्रकारों ने वहां मौजूद लोगों से बात की, तो उन्हें इसे लेकर स्पष्टता नहीं थी कि वो किसका भाषण सुनने आए हैं, ये साफ़ झलक रहा था कि भीड़ को लाया गया है, लेकिन राजनीति में ये आम बात है और ठाकरे के गुट ने भी भीड़ जुटाने की निश्चित ही कोशिश की है.”
शिवाजी पार्क में हर साल मुंबई के लोगों का जमावड़ा होता है. लेकिन प्राजक्ता के मुताबिक इस बार ठाकरे की रैली में गांव के काफ़ी लोग नज़र आए. वो कहती हैं, “आमतौर बड़ी संख्या में मुंबई के लोग शिवाजी पार्क में इकट्ठा होते है, वो इस साल कम क्यों आए, या फिर वो शिंदे की रैली में चले गए, ये साफ़तौर पर कहना मुश्किल है.”
मंच पर स्मिता ठाकरे.
बाला साहेब ठाकरे की बहू स्मिता ठाकरे एक ज़माने में शिवसेना में काफ़ी सक्रिय हुआ करती थीं. लेकिन उद्धव की कमान संभालने के बाद उनकी सक्रियता कम हुई. वो अपने पुत्र के साथ कल एकनाथ शिंदे गुट की रैली में मंच पर थीं.
शिंदे के साथ बाला साहेब के पुत्र जयदेव ठाकरे भी थे. प्राजक्ता कहती हैं कि शिंदे का ये कदम ये बताने की कोशिश है कि ठाकरे परिवार के लोग भी उनके साथ हैं. और ये कि उद्धव ठाकरे अपने परिवार को भी साथ लेकर नहीं चल पा रहे.
प्राजक्ता के मुताबिक, “वो ठाकरे परिवार के चेहरों को साथ लाकर एक संदेश देना चाहते हैं, लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि जयदेव ठाकरे या स्मिता ठाकरे का अपना कोई वोट बैंक नहीं हैं, इसका फ़ायदा चुनाव में मिलेगा, ऐसा लगता तो नहीं हैं.”
भाषण के चुनावी मायने?
दोनों ही गुटों के भाषण को आने वाले चुनाव के मद्देनज़र महत्वपूर्ण माना जा रहा था. लेकिन क्या कोई किसी एक गुट का भाषण दूसरे से बहुत दमदार रहा, ये फिर किसी एक गुट को इसका बहुत फ़ायदा मिलेगा?
प्राजक्ता का मानाना है कि ये कहना है कि ये बता पाना मुश्किल है.
वो कहती हैं, “उद्धव हमेशा ही इमोशनल भाषण देते है, एकनाथ शिंदे ने भी बाला साहेब और उनके सिद्धांतों का ज़िक्र किया. मतदाता साफ़तौर पर कंफ्यूज़ है, उनका उद्धव से जुड़ाव भी है और ताकत उन्हें किसी और के हाथ में दिख रही है.ये बता पाना बहुत मुश्किल है कि मतदाताओं के दिमाग में फिलहाल क्या चल रहा है.”

