लेकिन अभी मुंबई में इसके आधे यानी केवल एक लाख बीस हजार के आसपास शौचालय हैं। जिनका निर्माण बीएमसी और म्हाडा ने किया है। इनमें से करीब 25 प्रतिशत शौचालय बेहद बुरी हालत में हैं और उन्हें साफ और सुरक्षित नहीं माना जा सकता है।
मुंबई को पांच साल पहले खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया था। इसके बावजूद मुंबई अभी भी सार्वजनिक शौचालयों की मांग और उनकी उपलब्धता के बीच काफी गैप है। इसको पूरा करने के लिए मुंबई में अभी भी सवा लाख सार्वजानिक शौचालय की आवश्यकता है। स्वच्छ भारत अभियान के मापदंडों के मुताबिक हर 25 लोगों पर एक सार्वजनिक शौचालय होना चाहिए, लेकिन मुंबई इसमें बहुत पीछे है।
प्रजा फाउंडेशन ने पिछले दिनों खुलासा किया था कि मुंबई में 1769 महिलाओं पर सिर्फ एक टॉयलेट है। वहीं 696 पुरुषों पर एक टॉयलेट है। प्रजा का कहना है कि 2018 में यह देखा गया कि 4 सार्वजनिक शौचालयों में से केवल 1 महिलाओं के लिए था, जो केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत तय किए गए मानक 100-400 पुरुषों तथा 100-200 महिलाओं के लिए 1 शौचालय से काफी कम है।
खुले में शौच की समस्या से निपटारे के लिए स्वच्छ भारत अभियान में सार्वजनिक शौचालयों के अलावा घरों में शौचालय बनाने का प्रावधान भी है। जिसे व्यक्तिगत घरेलू लैट्रिन के नाम से जाना जाता है। लेकिन इस मामले में भी मुंबई पीछे है।
बीएमसी के एक अधिकारी ने कहा कि वर्ष 2014 में स्वच्छता अभियान शुरू होने के बाद बीएमसी को घरेलू टॉयलेट निर्माण के लिए हजारों आवेदन आए, लेकिन शर्तों को पूरा न करने के कारण आधे को ही मंजूरी मिल पाई। उसमें से भी केवल 20 प्रतिशत का निर्माण हो पाया है। अधिकारी ने कहा कि इसके कई कारण हैं जिसमें जमीन की कमी, सीवेज लाइन बिछाने के निर्माण के लिए कम जगह और पहाड़ी इलाका जैसे कारण
