मराठा आरक्षिता वर्ग से संबंधित विवाद बीजेपी को फिर से सता रहा है, जब जलना में हुई हांगामे के बीच, शिवसेना-नसीक मुक्त विधायक विजय दादा जरडळे ने सरकार के खिलाफ आलोचना की है। इसके पीछे के कारणों को समझने के लिए, हमें पिछले दशक के तापमान की ओर देखने की आवश्यकता है।
महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को आरक्षित वर्ग के रूप में स्थापित किया जाने के प्रस्ताव का मुद्दा वर्ष 2017 में उभरा था। इस प्रस्ताव के अनुसार, मराठा समुदाय को 16% की आरक्षित सीटें प्रदान की जानी थी, जो कि सूचीबद्ध नहीं थीं। इसके परिणामस्वरूप, मराठा समुदाय को आरक्षित वर्ग के रूप में मान्यता देने के खिलाफ याचिका दाखिल की गई, जिसने महाराष्ट्र सरकार के योग्यता क्रिटीरिया को चुनौती दी।
यह विवाद बीजेपी सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरा और मराठा समुदाय की आरक्षिता के लिए आंदोलन आयोजित किया गया, जिसमें लाखों लोग शामिल हुए।
मराठा आरक्षिता के खिलाफ किए गए आंदोलन के परिणामस्वरूप, 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय को 16% की आरक्षित सीटें प्रदान करने का फैसला किया। इसके बाद, इस विषय पर कई न्यायिक मुद्दे भी चले, जिनमें सुप्रीम कोर्ट भी शामिल हुआ।
इसके बावजूद, 2020 में महाराष्ट्र सरकार ने आरक्षित सीटों के खिलाफ केंद्रीय कानून मंत्रालय में याचिका दाखिल की, जिसे उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भेजा। जवाब में, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मराठा आरक्षिता की चुनौती देने के लिए कहा।
इसके परिणामस्वरूप, जब भी मराठा आरक्षिता के मुद्दे फिर से उभरते हैं, तो यह बीजेपी सरकार को परेशानी में डालता है, खासतर जब वह महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत प्राप्त करने के लिए मात्र कुछ सीटों की कमी में होती है। इसके साथ ही, यह मराठा समुदाय के बीच आरक्षिता की मांगों को लेकर एमवीए और बीजेपी के बीच राजनीतिक संघर्ष का भी कारण बनता है।