आर्टिकल 370 पर मोदी सरकार के वकील ने ऐसा क्या कह दिया कि सुप्रीम कोर्ट में ही तमतमा गए कपिल सिब्बल?

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सुप्रीम कोर्ट में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने, राज्य का दर्जा बहाल करने और विधानसभा चुनाव कराने की मांगों की याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। सुनवाई के 13वें दिन गुरुवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के बीच तीखी बहस हुई। सरकार के लिए पेश हुए मेहता ने अदालत को बताया कि चुनाव किसी भी समय कराये जा सकते हैं और यह फैसला केंद्रीय और राज्य चुनाव आयोग के हाथ में है। हालांकि, राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए समयसीमा के बारे में मेहता ने कहा कि सरकार ‘सटीक समय अवधि नहीं बता सकती है।

सरकार से सिब्बल के कड़े सवाल

अपने शुरुआती बयान में सॉलिसिटर जनरल ने जम्मू और कश्मीर में कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार को उजागर करने के लिए सरकारी आंकड़े भी गिनाए और कहा कि ‘2018 में 52 संगठित बंद हुआ करते थे और अब यह शून्य है।’ इस दलील का वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कड़ा विरोध किया। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील ने उस टिप्पणी पर व्यंग्यात्मक कटाक्ष करते हुए कहा, ‘पांच हजार लोग नजरबंद हैं और धारा 144 लागू है, तो धरना कैसे हो सकता है?’ उन्होंने सरकार से ‘लोकतंत्र का मजाक न बनाने का आग्रह किया।

उन्होंने कहा, ‘5,000 लोग नजरबंद थे… कृपया लोकतंत्र का मजाक न बनाएं। धारा 144 लागू कर दी गई और इंटरनेट बंद कर दिया गया। इस अदालत ने इस सब को माना है। लोग अस्पताल भी नहीं जा सकते थे।’ उन्होंने प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के सामने कहा, ‘तो बंद या धरना कैसे हो सकता है? इस अदालत ने एक फैसले में माना है कि इंटरनेट बंद था… और फिर वे कह रहे हैं कि कोई शटडाउन नहीं था?’ उन्होंने पूछा, ‘जब लोग अस्पताल भी नहीं जा सकते थे तो बंद कैसे हो सकता है?’

तमतमा गए कपिल सिब्बल

सिब्बल अपनी बातें रखते हुए तमतमाए से दिखे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सरकार पर एक के बाद एक, कई हमले किए। उन्होंने कहा, ‘समस्या यह है कि यह (सुनवाई) टेलीविजन पर प्रसारित हो रही है और यह सब रिकॉर्ड पर है। वहां ऐसा लगता है कि ‘देखो सरकार क्या कर रही है। ‘ इस पर सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया, ‘प्रगति कभी समस्या नहीं पैदा करती है।’ फिर चीफ जस्टिस ने इस बहस में मध्यस्थ की भूमिका निभाई। उन्होंने कहा, ‘संवैधानिक मुद्दे से केवल संवैधानिक दृष्टिकोण से ही निपटा जाएगा, न कि नीतिगत निर्णयों के आधार पर।

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